पत्थरों को तैराना - सद्गुरु रविदास महाराज जी का चमत्कार

(चित्र: सद्गुरु रविदास महाराज जी द्वारा पत्थरों को तैराने की कथा)
पत्थरों को पानी में तैराने से भाव है-कठोर हृदय को भी पिघला देना, अज्ञानी को ज्ञान देकर समझाना, मूढ़ व्यक्ति को भी अक्ल का धनी बनाना, असंभव को संभव बनाना, पापियों का उद्धार करना, बुराइयों का नाश करना इत्यादि। सद्गुरु रविदास महाराज जी एक ऐसी महान शक्ति हुए हैं जिन्होंने अपने ज्ञान से बड़े-बड़े अज्ञानियों की रूढ़िवादी गलत धारणाओं को जड़ से उखाड़कर उन्हें ज्ञान का सूरज दिखाया। सदियों से चली आ रहीं मानवता विरोधी धारणाओं को समाप्त कर प्रेम और समानता का मार्ग दिखाया। वे दिल जो पत्थर हो चुके थे, जिन पर गरीबों की आहों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था, उन दिलों में करूणा और दया का दीप जलाया।
आधुनिक युग में लोगों का मानना है कि सद्गुरु रविदास महाराज जी ने पत्थर दिलों का उद्धार किया, उन्हें संसार रूपी भवसागर से पार करवाया। इसी लिए आप को 'पत्थरों को तारने वाला' कहा जाता है। लेकिन इतिहास की अनेक पुरातन श्री गुरु रविदास जन्म साखियाँ इस बात की भी गवाह हैं कि जहाँ महाराज जी ने पत्थर दिलों का कल्याण किया, वहाँ सचमुच पत्थरों को भी पानी में तैराया था ।
“प्रो० जसबीर सिंह साबर, चेयरमैन, श्री गुरु रविदास चेयर ने अपनी पुस्तक गुरु रविदास गाथा के पृष्ठ नं 101 पर और संत दरबारी दास अबोध में लिखा है :-
रविदास ने ठाकुर लेकरि डारिउ सरता माहिं।
मुरगई जिउ तर फिरिउ बामन देखि रिसाहि ।।
(चौपाई)
मुरगई जिउ जल महि फिरै।
भगति हेत हरि क्रीड़ा करै।
सिआम कवल जिउ देखि दिखाई।
मानो आखिअन पुतरी सिआम सुहाइ ।।
राजो देखि बहुत सुख पावै।
बामन सगले अधिक खिसावै ।।
चुगल खोर मूंह काला भइआ।
रविदास भगति का आदर रहिआ।।
तब रविदास भगति बुलाइया। प्रेम मगन हरि दउरिआ आइया ।।
जब हर प्रकार से पण्डितों की शिकायत को महाराज जी ने अपनी भक्ति से राजा हरदेव सिंह नागर मल्ल की भरी कचहरी में झूठा साबित करके पण्डितों के नाकों चने चबवा दिए तो विवश पण्डित एक और बहाना बनाकर रविदास महाराज जी को नीचा दिखाने का असफल प्रयत्न करने लगे। वे कहने लगे - 'राजा! हम जब ठाकुरों को गंगा में स्नान करवाते हैं तो रविदास अपनी चमड़े वाली पत्थरी को भी गंगा में स्नान करवाता है जिससे गंगा माँ इनसे सख्त नाराज़ हैं और हमारे ठाकुर जी भी नाराज़ हैं। जिस पत्थरी पर रविदास चमड़ा काटता है, उस पत्थरी को गंगा जल में स्नान करवा कर एक तो गंगा को अपवित्र करता है। दूसरा ठाकुर जी भी दूषित हो जाते हैं। इससे हमारा जीवन भी नष्ट हो जाएगा। अतः राजा! रविदास को ऐसा करने के लिए मना करें। राजा ने फिर सद्गुरु जी से विनती की कि वह पण्डितों की बात मान जाएं और अपनी पत्थरी को गंगा में स्नान न करवाएं।
सद्गुरु रविदास जी ने सोचा कि यह विप्र ऐसे मानने वाले नहीं हैं। उनको कुछ करके दिखाना ही पड़ेगा। सद्गुरु जी राजा को कहने लगे कि राजा! इस कार्य का फैसला गंगा माई स्वयं ही करेंगी कि वह किससे प्यार करती है-रविदास जी की पत्थरी से या पण्डितों के ठाकुरों से। राजा कहने लगा, 'यह कैसे पता चलेगा? रविदास जी बोले, जिनसे प्यार होगा उनके ठाकुर गंगा में तैर जाएंगे और जिनसे गंगा नाराज़ होगी, उनके ठाकुर डूब जाएँगे। पण्डित बोले कि राजा ! कभी पत्थर भी पानी में तैर सकता है! रविदास हम सब को गुमराह कर रहा है। झूठी बातें करके अपनी बात को सही बताना चाहता है। पर राजा को अब महाराज की शक्ति पर पूर्ण भरोसा था। वह मन ही मन उनके नूरी स्वरूप को निहार रहा था। राजा गुरु जी का यह चमत्कार सभी को दिखाना चाहता था। राजा ने सभी को अपने-अपने ठाकुरों सहित गंगा के किनारे आने का आदेश दे दिया।
महाराज ने लगभग तीन मन की पत्थरी तट पर रखी। राजा ने कहा कि सभी अपने-अपने ठाकुरों को पानी में तैराओ। पण्डित बोले कि राजा, पहले रविदास को कहो कि वह अपनी पत्थरी पानी में डालें। विप्र जानते थे कि यदि रविदास की पत्थरी ही पानी में नहीं तैरेगी तो हमारी बारी कैसे आएगी? सद्गुरु जी को पहले पत्थरी तैराने के लिए कहा गया। आप जी ने परम पिता परमात्मा के आगे करबद्ध प्रार्थना की, शीश झुकाया और पत्थरी को गंगा के जल में बहा दिया। गंगा माता ने पत्थरी को अपने हाथों से उठाया और मन ही मन मुस्कुराने लगी कि आज सद्गुरु महाराज जी द्वारा दी गई सेवा पाकर मैं धन्य हो गई हूँ। महाराज जी के आदेश अनुसार पत्थरी पानी में तैरती रही। चारों तरफ सद्गुरु रविदास जी की जय-जयकार होने लगी, आप की महिमा का गुणगान होने लगा लेकिन विप्रों का मन डोलने लगा। माथे से पसीने छूटने लगे, उनकी पोल खुलने का समय आ गया। अब उनकी बारी थी पत्थर तैराने की। सभी ने बारी-बारी रूई में लपेट कर अपने ठाकुर पानी में डाले। रूई पानी में भीग गई और पत्थर डूबते गए। सभी लोग यह दृश्य देख रहे थे। राजा कहने लगा विप्रो ! देखो अब आप हर प्रकार से झूठे सिद्ध हुए हो। अपने पाखण्डों से आप ही पर्दा उठा रहे हो और फिर भी आप अपने को परमात्मा समझते हो, अपने को ऊँच कहते हो? अब आप ही बताओ कि रविदास महान है या आप?
इस प्रकार सद्गुरु रविदास महाराज जी ने उलटी गंगा बहाकर और पत्थरों को पानी में तैराकर, धार्मिक क्रान्ति से लोगों को बताया कि हम सब एक हैं और हम सब का एक ही मालिक हैं। उसके सामने कोई छोटा-बड़ा नहीं है। सभी को मालिक की भक्ति करने का अधिकार है। यह जाति-पाति मानव के बनाए हुए हैं। आप जी के ऐसे महान विचारों के कारण ही सद्गुरु सभी वर्षों में प्रसिद्ध हुए।
यह प्रसंग यह भी बताता है कि सद्गुरु केवल कर्मकांड में विश्वास नहीं रखते थे, बल्कि सच्चे प्रेम और भक्ति को ही ईश्वर प्राप्ति का मार्ग मानते थे। उनके उपदेश आज भी समाज को जाति-पाति और भेदभाव से ऊपर उठकर एकता, प्रेम और भाईचारे का संदेश देते हैं।
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