सतगुरु रविदास महाराज जी का सच्चा व्यापार
सद्गुरु रविदास जी महाराज - उनका सच्चा व्यापार
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सतगुरु रविदास महाराज जी का सच्चा व्यापार
सतगुरु रविदास महाराज जी का सच्चा व्यापार
“हउ बनजारो राम को, सहज करउ व्यापार।”
सद्गुरु रविदास महाराज जी जब युवावस्था में पहुँचे, तब उनकी सोच पहले से कहीं अधिक परिपक्व हो चुकी थी। समाज में फैली रूढ़िवादिता, असमानता और अशांति को देखकर आप अक्सर गहरे चिंतन में लीन रहते थे। मानवता के उपासक सद्गुरु रविदास जी के मन में सदा यह विचार उठता कि इस संसार में समानता, स्वतंत्रता और सच्ची भक्ति कैसे स्थापित की जा सकती है? लोग मायावी जाल से कैसे मुक्त हों और प्रभु नाम की सच्ची कमाई में कैसे लगें?
उस समय धर्म को भी व्यापार का रूप दे दिया गया था। यदि कोई व्यक्ति प्रभु-नाम, सत्य या संसार की नश्वरता की बात करता, तो धर्म के ठेकेदार उसे मूर्ख कहकर दंडित करते थे। सद्गुरु रविदास जी ऐसा मार्ग खोजना चाहते थे जिससे लोगों की सोच में शांतिपूर्वक परिवर्तन लाया जा सके।
आपके पिता श्री संतोख दास जी अपने इकलौते पुत्र को निरंतर चिंतन में लीन देखकर चिंतित रहने लगे। उनके मन में विचार आया — “लोग क्या कहेंगे? मेरा बेटा न व्यापार करता है, न कामधंधा। इस स्थिति में इसका विवाह भी कैसे होगा?” धीरे-धीरे उनकी चिंता बढ़ती गई। वे सोचने लगे कि संसार में रहते हुए किसी न किसी व्यापार में लगना ही पड़ेगा।
एक दिन श्री संतोख दास जी घर से निकले और देखा कि खुले मैदान में कुछ व्यापारी अपने धन का हिसाब-किताब कर रहे हैं। उस समय व्यापारी दुकानों में नहीं बैठते थे और न ही बड़े-बड़े गोदाम होते थे। वे बैलों या घोड़ों पर सामान लादकर नगर-नगर, गाँव-गाँव जाकर व्यापार करते थे। बनारस के पास उन्हीं व्यापारियों का एक काफिला रुका हुआ था।
उनके सामने पैसों के ढेर देखकर संतोख दास जी के मन में विचार आया — “इन व्यापारियों के माता-पिता कितने भाग्यशाली हैं जिन्होंने व्यापार से इतना धन अर्जित किया है। अगर मेरा बेटा भी यही व्यापार सीख ले तो हमारी गरीबी दूर हो सकती है।”
घर पहुँचकर उन्होंने प्रेमपूर्वक अपने पुत्र से कहा —
“बेटा, मैंने तुझे पढ़ने भेजा, पर तुमने पढ़ाई नहीं की। फिर चमड़े का काम सिखाना चाहा, पर वह भी तुझे रास नहीं आया। अब मैं चाहता हूँ कि तू व्यापार सीखे और उसमें मन लगाकर अच्छा व्यापारी बने। ऐसा करने से हमारा घर सम्पन्न हो जाएगा।”
यह सुनकर सद्गुरु रविदास महाराज जी विनम्रता से बोले —
“पिताजी! मैं तो जन्म से ही व्यापारी हूँ। मैं प्रभु के नाम का व्यापार करता हूँ। मैंने इस व्यापार में बहुत लाभ कमाया है और कभी घाटा नहीं हुआ। प्रभु की कृपा से मैं एक सफल व्यापारी हूँ।”
पुत्र की यह बात सुनकर पिता संतोख दास जी को क्रोध तो बहुत आया, पर संयम रखते हुए बोले —
“बेटा, यह कैसी बातें कर रहे हो? तुमने कौन-सा व्यापार किया है? तुम्हारे पास न बैल हैं, न सामान, न कोई सौदा। तुम तो कभी घर से बाहर भी नहीं निकले! फिर यह कैसा व्यापार और कहाँ की कमाई?”
सद्गुरु जी का सच्चा व्यापार — राम नाम की कमाई
सद्गुरु रविदास जी मुस्कुराए और शांत स्वर में बोले —
“पिताजी! मेरा व्यापार धन-दौलत या वस्त्रों का नहीं, बल्कि प्रभु-नाम का है। मैं संसार के बाजार में प्रेम, भक्ति और नाम का सौदा करता हूँ। यह ऐसा व्यापार है जिसमें कभी घाटा नहीं होता, और जो इसे अपनाता है, वह सदा आनंद में रहता है।”
यह सुनकर पिता संतोख दास जी की आँखें भर आईं। उन्होंने समझ लिया कि उनका पुत्र कोई साधारण व्यापारी नहीं, बल्कि प्रभु के नाम का सच्चा सौदागर है, जो आत्मा के उद्धार का मार्ग दिखाने आया है।
सद्गुरु जी का यह सन्देश आज भी मानवता के लिए प्रेरणा है — “संसार का सच्चा व्यापार प्रभु के नाम में है। जो नाम रूपी रत्न का सौदा करता है, वही सच्चा व्यापारी कहलाता है।”
सद्गुरु जी का पवित्र शब्द
घट अवघट डूगर घणा।
इकु निरगुणु बैलु हमार ।
रमईए सिउ इक बेनती, मेरी पूंजी राखु मुरारि ।।१।।
को बनजारो राम को, मेरा टांडा लादिआ जाइ रे ।।१।। रहाउ ।।
हउ बनजारो राम को, सहज करउ ब्यापारु ।
मै राम नाम धनु लादिआ, बिखु लादी संसारि ।।२।।
उरवार पार के दानीआ, लिखि लेहु आल पतालु ।
मोहि जम डंडु न लागई, तजीले सरब जंजाल ।।३।।
जैसा रंग कसुंभ का, तैसा इहु संसारु ।
मेरे रमईए रंगु मजीठ का, कहु रविदास चमार ।।४।।१।।
सद्गुरु रविदास महाराज जी अपने पिता संतोख दास जी से कहते हैं कि – “पिता जी! जो व्यापार मैं करता हूँ, उसके लिए न बैलों की ज़रूरत है, न गाड़ियों की।” मेरा मन ही वह “निर्गुण बैल” है जिस पर मैंने अपने श्वासों की पूंजी लाद रखी है। जिस “पहाड़” पर मैं व्यापार करता हूँ, वह कोई बाहरी पर्वत नहीं, बल्कि हमारे शरीर का वह स्थान है जहाँ ध्यान स्थिर होता है — सिर की चोटी और दोनों आँखों के बीच का क्षेत्र, जहाँ “अंतर-प्रकाश” से प्रभु का अनुभव होता है।
वह सौदागर प्रभु है — जो बिना भेदभाव के, केवल नाम-भक्ति में लीन व्यापारी को अपनी कृपा की कमाई देता है। यह सच्चा व्यापार है — जहाँ घाटा नहीं, केवल आत्मिक लाभ है। जो जीव अपने श्वासों को प्रभु नाम की कमाई में नहीं लगाते, वे विकारों में अपनी पूंजी गँवाते हैं और बार-बार जन्म-मरण के चक्र में फँसते हैं।
“24 हज़ार दम खर्च बन्दे दा, आमदन मूल न थीवैं,
जिस बंदे नूँ इतना घाटा, उह बंदा किस विध जीवे ।।”
सद्गुरु महाराज कबीर जी भी यही संदेश देते हैं कि मानव के हर श्वास की कीमत है —
“कहिता हूँ, कहि जाति हूँ, काहु बजावत ढोल।
सवासा बिरथा जाति है, तीन लोक का मोल।।”
अर्थात जो व्यक्ति अपने श्वासों को व्यर्थ न जाने दे, वही सच्चा सौदागर है — जो हर क्षण प्रभु नाम का जप करता है।
सच्चा व्यापार- राम-नाम की कमाई
सद्गुरु रविदास जी का “सच्चा व्यापार” केवल राम-नाम की कमाई है। भक्ति का यह सौदा ही ऐसा है जिसमें कोई घाटा नहीं होता। जो इसे अपनाता है, वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर सदा आनंद में रहता है।
दुनिया का रंग कसुंभ (कुसुंभी) के फूल जैसा है — जल्दी मुरझा जाता है। परंतु प्रभु नाम का रंग मजीठ के समान है — जो एक बार चढ़ जाए तो कभी उतरता नहीं। इसीलिए सद्गुरु जी कहते हैं — “राम-नाम का व्यापार ही सच्चा सौदा है। जो इसे करता है, वही अमर आनंद को प्राप्त करता है।”
संकलप
विश्व के हर कोने में स्थित रविदासिया संगत आज सद्गुरु रविदास महाराज जी की वाणी को जन-जन तक पहुँचाने में निरंतर सक्रिय है।
उनकी अमृतवाणी में सरल और सहज भक्ति मार्ग, नाम भक्ति का महत्व, संत परंपरा की निरंतरता, बाहरी कर्मकांडों का खंडन, और सामाजिक समरसता का अद्वितीय संदेश निहित है।
सद्गुरु रविदास महाराज जी का जीवन और उपदेश आज भी मानवता के मार्गदर्शक हैं — जो सिखाते हैं कि सच्ची भक्ति वही है जिसमें मानव सेवा और समानता सर्वोपरि हो।
आपकी शिक्षाओं से समाज में नई चेतना आई, जिसने गरीबों, दलितों और शोषितों को सम्मान और आत्मविश्वास दिया।
इस लेख के माध्यम से, सद्गुरु रविदास महाराज जी/ के पावन जीवन की गाथा को भावनाओं और सत्य के सूत्र में पिरोकर आप सभी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है गुरु रविदास जी महाराज का जीवन और उनके उपदेश आज भी समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चाई, समानता और मानवता का पालन करते हुए ही हम एक बेहतर और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं। उनके विचार और कार्य आज भी हमें प्रेरणा का स्रोत प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष
गुरु रविदास जी महाराज का जीवन और उपदेश आज भी हमें सिखाते हैं कि सच्चाई, समानता और मानवता के सिद्धांतों पर चलकर हम एक आदर्श समाज का निर्माण कर सकते हैं। उनकी पवित्र शिक्षाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक रहेंगी।
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✍️ लिखा गया — Sher Singh Ambala, Global Ravidassia Welfare Organization
📚 संदर्भ (Footnotes)
- ‘बाणी श्री गुरु रविदास जी’ — पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ द्वारा प्रकाशित।
- श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी, राग गुजरी, भ. रविदास जी की वाणी।
- ग्लोबल रविदासिया वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन, भारत एवं यूरोप के स्रोत।
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