शिरोमणि जगतगुरु सतगुरु रविदास जी महाराज: सच्चाई, समानता और मानवता के प्रतीक
सद्गुरु रविदास जी महाराज - मानवता के अग्रदूत
📖 सामग्री सूची (Table of Contents) ▼
प्रस्तावना
रुहनीयत के मालिक, उस निराकार परम पिता की भक्ति करने वाले, अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाकर भूलों को राह दिखाने वाले, अपनी अनुकंपा से पत्थरों को तराने वाले, गरीबों के मसीहा, शांति के अग्रदूत, दया के सागर — मेरे कुल गुरु, परम पूजनीय, परम वंदनीय, हृदय सम्राट "शिरोमणि सद्गुरु रविदास जी महाराज"।
सद्गुरु रविदास जी महाराज, जिन्हें शिरोमणि सद्गुरु के रूप में सम्मानित किया जाता है, 13वीं शताब्दी के एक महान संत, कवि, और समाज सुधारक थे। उनका जीवन और उनकी शिक्षाएं आज भी हमें सच्चाई, समानता और मानवता की राह पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। उनके उपदेशों ने समाज में एक नई जागरूकता और बदलाव का सूत्रपात किया, जिसने हजारों वर्षों से चली आ रही सामाजिक असमानताओं और भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत आवाज उठाई।
सद्गुरु रविदास महाराज जी ने एक ऐसे विश्व की कल्पना की, जहां पर सभी को पेट भर खाना मिल सके, पहनने के लिए कपड़ा और रहने के लिए घर मिल सके। जहां सभी बराबर हों उन्होंने लिखा :-
ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिलै सबन को अन्न ।
छोट बड़ो सभ सम बसें, रविदास रहै प्रसन्न ॥
सद्गुरु रविदास जी महाराज का जन्म और परिवार
सद्गुरु रविदास जी महाराज का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन वर्ष 1377 ईस्वी (1433 विक्रमी) में उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के सीर गोवर्धनपुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) था।
उनका परिवार चर्मकार जाति से था, जिसे उस समय समाज के निम्न वर्ग में गिना जाता था। सद्गुरु जी ने बचपन से ही धार्मिक और आध्यात्मिक रुचि रखी और समाज में व्याप्त असमानताओं के खिलाफ आवाज उठाई। गुरु रविदास महाराज जी ने उस समय सभी धार्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया जो कि हमे उनकी अमृतवाणी से प्रतीत होता है और प्रमाण मिलते है ।
| विवरण | जानकारी |
|---|---|
| नाम | सद्गुरु रविदास महाराज जी |
| माता का नाम | कलसा देवी |
| पिता का नाम | संतोख दास |
| जन्म स्थान | सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी |
| जन्म तिथि | माघ सुदी पूर्णिमा, 1377 ई. |
| ब्रह्मलीन स्थल | चितौड़गढ़ |
सद्गुरु रविदास महाराज जी का गृहस्थ जीवन
सद्गुरु रविदास महाराज जी की प्रभु-नाम के प्रति लगन इतनी बढ़ गई थी कि आप संसार की बातों से पूरी तरह बेखबर रहने लगे। जब माता-पिता ने यह देखा, तो उन्होंने सोचा कि अब उनका विवाह कर दिया जाए ताकि गृहस्थ जीवन का उत्तरदायित्व आने पर वे संसारिक कार्यों में मन लगा सकें।
श्री राम चरण कुरील लिखते हैं:-“श्री गुरु रविदास जी ने गरीबों की सेवा में अपना सर्वस्व लुटा दिया। किसी भी गरीब को नंगे पाँव चलते नहीं देख सकते थे, जब तक उसे जूते पहना न देते, जाने नहीं देते थे।”
मेहनत से कमाया हुआ धन यूँ ही दान में देते देख, उनके पिता श्री संतोख दास जी चिंतित रहने लगे। उन्होंने अपने ससुर श्री बारू राम जी को संदेश भेजा कि वे अपने नाती के लिए एक योग्य कन्या की तलाश करें। श्री बारू राम जी, जो अपने क्षेत्र के मान्यवर व्यक्ति थे, ने गंगा पार मिर्जापुर गाँव में एक सुशील कन्या कुमारी लोना का चयन किया, जो श्री गुरु रविदास जी की हमउम्र थीं।
पृथ्वी सिंह आज़ाद और कई अन्य ग्रंथों में सद्गुरु जी की पत्नी का नाम लोना देवी बताया गया है, जबकि भाई जोध सिंह ने उनका नाम भगवंती लिखा है। वस्तुतः लोना उनका मायके का नाम था, जबकि विवाह के पश्चात् ससुराल में उन्हें भागिन देवी कहा जाने लगा।
सद्गुरु रविदास जी का विवाह उनके पिता ने इस उद्देश्य से किया कि वे पारिवारिक व्यापार को संभालें, परंतु सद्गुरु जी का उद्देश्य कुछ और ही था — वे तो समाज की सेवा और प्रभु-भक्ति के लिए ही जन्मे थे।
आप जी के विवाह के विषय में प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, अतः आपकी संतान के बारे में भी कोई निश्चित उल्लेख नहीं मिलता। यह अवश्य माना जाता है कि सद्गुरु जी ने गृहस्थ जीवन अपनाया था, परंतु उनकी संतान थी या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है।
आचार्य पृथ्वी सिंह आज़ाद अपनी पुस्तक “गुरु रविदास” (पृष्ठ 16) में “रविदास पुराण” के अनुसार उल्लेख करते हैं कि सद्गुरु जी का एक पुत्र था, जिसका नाम विजय दास था। महंत जसवंत सिंह के अनुसार, सद्गुरु रविदास जी के एक पुत्र और एक पुत्री थी — पुत्र का नाम संत दास और पुत्री का नाम संत कौर बताया गया है।
इसी प्रकार बाबा सति दरबारी अपनी रचना “रविदास परगास” में भी एक पुत्र होने का उल्लेख करते हैं।
किन्तु खेद की बात है कि इन सभी तथ्यों का कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। यदि सद्गुरु रविदास जी की संतान होती, तो निश्चय ही समकालीन इतिहास या बाद के ग्रंथों में उनका भी उल्लेख मिलता।
सद्गुरु रविदास महाराज जी ने अपने समाज को ही अपनी संतान माना। सभी प्रमाणों के आधार पर यही कहा जा सकता है कि यद्यपि सद्गुरु जी ने गृहस्थ जीवन अपनाया, परंतु उन्होंने सांसारिक बंधनों से मुक्त रहकर यह सिद्ध किया कि गृहस्थ जीवन में रहकर भी व्यक्ति ईश्वर की प्राप्ति कर सकत/ा है।
सद्गुरु रविदास महाराज जी की लेखनी और विचारधारा
सद्गुरु रविदास महाराज जी न केवल एक महान संत और समाज सुधारक थे, बल्कि एक गहन विचारक और अद्वितीय कवि भी थे। अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेक रचनाएँ और पद लिखे, जिनमें समाज, धर्म, भक्ति और मानवता के प्रति उनके गहरे विचार अभिव्यक्त हुए हैं।
उनकी वाणी में जीवन के हर पहलू की गूंज सुनाई देती है — धर्म की सच्ची भावना, भक्ति की निर्मलता, सेवा की महत्ता और मानव समानता का संदेश। सद्गुरु जी ने अपनी कविताओं और उपदेशों के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि ईश्वर की प्राप्ति किसी जाति, वर्ग या बाहरी आडंबरों पर निर्भर नहीं है, बल्कि यह सच्चे प्रेम, भक्ति और सत्कर्म से संभव है।
सतिजुगि सतु तेता जगी दुआपरि पूजाचार ।
तीनौ जुग तीनौ दिड़े कलि केवल नाम अधार ॥
उन्होंने अपने लेखों में समाज में व्याप्त जातिवाद, भेदभाव और ऊँच-नीच की प्रथा के विरुद्ध खुलकर आवाज उठाई। सद्गुरु जी का संदेश था कि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं और किसी के साथ भेदभाव करना उस सृष्टिकर्ता का अपमान है।
जन्म जात मत पूछिए का जात अरु पात।
रविदास पूत सब प्रभ के कोउ नहीं जात कुजात।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में सद्गुरु रविदास महाराज जी के चालीस शबद और एक श्लोक संकलित हैं। ये रचनाएँ उनकी गहन आध्यात्मिकता, समाजसेवा के प्रति समर्पण और ईश्वर-भक्ति की अद्भुत साधना को प्रदर्शित करती हैं।
नामु तेरो आरती मजनु मुरारे ।।
हरि के नाम बिनु झूठे सगल पसारे।
कहि रविदास । मिलियौ गुर पूरे, जिहि अंतर | हरि मिलानै । ।2।। (अमृतवाणी पन्ना 65)
इन शबदों में उन्होंने प्रभु-नाम के जप, सच्चे गुरु की प्राप्ति, संत संगति के महत्व और मायाजाल से मुक्त जीवन के उपदेश दिए हैं।
सद्गुरु जी की लेखनी ने समाज के वंचित, दलित और उत्पीड़ित वर्गों के जीवन में आशा का नया प्रकाश जगाया। उन्होंने उन्हें आत्म-सम्मान, समानता और अधिकारों के लिए खड़े होने की प्रेरणा दी। सद्गुरु रविदास जी का संदेश केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का भी आह्वान था।
आज विश्वभर में सद्गुरु रविदास महाराज जी के करोड़ों अनुयायी निवास करते हैं। उनके अनुयायियों ने सद्गुरु जी की पावन वाणी का गहन अध्ययन कर, विभिन्न ग्रंथों में बिखरी उनकी शिक्षाओं को एकत्रित कर "अमृतवाणी ग्रंथ" का संकलन किया है। यह ग्रंथ उनकी आध्यात्मिक गहराई और मानवता के प्रति उनके समर्पण का अमूल्य भंडार है।
विश्व के हर कोने में स्थित रविदासिया संगत आज सद्गुरु रविदास महाराज जी की वाणी को जन-जन तक पहुँचाने में निरंतर सक्रिय है।
उनकी अमृतवाणी में सरल और सहज भक्ति मार्ग, नाम भक्ति का महत्व, संत परंपरा की निरंतरता, बाहरी कर्मकांडों का खंडन, और सामाजिक समरसता का अद्वितीय संदेश निहित है।
सद्गुरु रविदास महाराज जी का जीवन और उपदेश आज भी मानवता के मार्गदर्शक हैं — जो सिखाते हैं कि सच्ची भक्ति वही है जिसमें मानव सेवा और समानता सर्वोपरि हो।
संघर्ष और समाज सेवा में योगदान
सद्गुरु रविदास महाराज जी ने सामाजिक भेदभाव, जातिवाद, और धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध आवाज उठाई। आपने मानवता, समानता और प्रेम का संदेश दिया।
जातपात के फेर मंहि, उरझि रहई सभी लोग ।
मानुषता को खात हइ रविदास जात का रोग।।
आपकी शिक्षाओं से समाज में नई चेतना आई, जिसने गरीबों, दलितों और शोषितों को सम्मान और आत्मविश्वास दिया।
सद्गुरु रविदास जी महाराज का समाज में स्थान और महत्व
सद्गुरु रविदास जी महाराज केवल एक संत ही नहीं, बल्कि समाज सुधारक और ईश्वर के अवतार माने जाते हैं। श्री गुरु अर्जुन देव जी ने कहा —
सद्गुरु रविदास महाराज जी केवल भक्त, संत, गुरु या सद्गुरु ही नहीं थे, बल्कि वे ‘ठाकुर’ (स्वयं परमात्मा) भी थे। मुझे पूर्ण विश्वास है कि साहित्य प्रेमी और विद्वान पाठक इस महानता की सराहना करेंगे। श्री गुरु अर्जुन देव जी ने आप जी को दुनिया के ठाकुर, गुरुओं के गुरु और ऊँचों के ऊँच कहा है:
"ऊच ते ऊच नाम देउ समदरसी रविदास ठाकुर बणि आई।"
गुरु प्यारी साध-संगत! इस ठाकुर की महिमा अकथनीय है। विश्व का कोई भी कोश महाराज जी की महानता को अपने शब्दों में पूरी तरह व्यक्त नहीं कर सकता। उनकी पवित्रता, महानता और प्रासंगिकता समुद्र की लहरों के प्रवाह जैसी है, जो निरंतर अपने अलौकिक रूप से सभी को आकर्षित करती है और शाश्वत आनंद प्रदान करती है।
इस लेख के माध्यम से, सद्गुरु रविदास महाराज जी/ के पावन जीवन की गाथा को भावनाओं और सत्य के सूत्र में पिरोकर आप सभी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है गुरु रविदास जी महाराज का जीवन और उनके उपदेश आज भी समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चाई, समानता और मानवता का पालन करते हुए ही हम एक बेहतर और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं। उनके विचार और कार्य आज भी हमें प्रेरणा का स्रोत प्रदान करते हैं।
आपके उपदेश आज भी समाज को समानता, एकता और मानवता के मार्ग पर अग्रसर करते हैं। आपके अनुयायी विश्वभर में आपका संदेश फैलाते हैं।
निष्कर्ष
गुरु रविदास जी महाराज का जीवन और उपदेश आज भी हमें सिखाते हैं कि सच्चाई, समानता और मानवता के सिद्धांतों पर चलकर हम एक आदर्श समाज का निर्माण कर सकते हैं। उनकी पवित्र शिक्षाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक रहेंगी।
🔗 संबंधित लेख
- 🌸गुरु रविदास महाराज जी का जीवन परिचय
- 🌸सत्संग का महत्व
- 🌸समानता और भाईचारे का संदेश
- 🌸सद्गुरु रविदास महाराज जी द्वारा पत्थर दिलों का उद्धार करना
- 🌸गुरु गोरखनाथ और सद्गुरु रविदास महाराज जी की अद्भुत भेंट
- 🌸सतगुरु रविदास महाराज जी के गुरु कौन है ?
- 🌸डेरा सचखंड बल्लां: रविदासिया धर्म की एक ऐतिहासिक यात्रा
- 🌸ग्लोबल रविदासिया वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन की पहल
✍️ Written by:
Mr. Sher Singh Ambala
President, Global Ravidassia Welfare Organization (India)
📚 संदर्भ (Footnotes)
- ‘अमृतबाणी श्री गुरु रविदास जी’ — "अमृतवाणी" डेरा सचखंड बल्लां द्वारा प्रकाशित।
- ‘बाणी श्री गुरु रविदास जी’ — पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ द्वारा प्रकाशित।
- आचार्य पृथ्वी सिंह आज़ाद — “गुरु रविदास”, पृष्ठ संख्या 16।
- डॉ. पदम् गुरचरण सिंह — “सद्गुरु रविदास जी की यात्राएं”।
- ‘रविदास रामायण’ — पंडित बख्शी दास।
- ग्लोबल रविदासिया वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन, भारत एवं यूरोप के स्रोत।
0 टिप्पणियाँ