*24 मई 2009 – एक ऐतिहासिक बलिदान दिवस की गाथा*
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अमर शहीद संत रामानंद जी |
प्रस्तावना
24 मई 2009 का दिन रविदासिया समाज के इतिहास में एक काला अध्याय और साथ ही अमर शहादत का प्रतीक बन गया। इसी दिन अमर शहीद संत रामानंद जी महाराज ने सतगुरु रविदास महाराज जी की अमृतवाणी के प्रचार के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनका बलिदान न केवल एक व्यक्ति की शहादत थी, बल्कि एक विचारधारा के अमर होने का संकेत था। आज जब *सतगुरु रविदास महाराज जी* का संदेश पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र बना है, तो यह संत रामानंद जी के अथक प्रयासों और बलिदान का ही परिणाम है ।
संत रामानंद जी: अध्यात्म और समाज सुधार के प्रणेता
संत रामानंद जी का जन्म *2 फरवरी 1952* को हुआ था। उन्होंने अपना जीवन *सतगुरु रविदास महाराज जी* के मानवतावादी संदेशों को विश्वभर में फैलाने के लिए समर्पित कर दिया। उनकी अध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत डेरा सचखंड बल्लां जालंधर पंजाब से हुई, जहाँ वे संत निरंजन दास जी महाराज के सहयोगी बने। उनकी गहन रुचि धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में थी, विशेषकर *गुरु ग्रंथ साहिब जी* में समाहित *सतगुरु रविदास महाराज जी के 40 शब्दों* ने उन्हें गहराई तक प्रभावित किया। इन्हीं ग्रंथों के माध्यम से उन्हें *अमृतवाणी* की महत्ता का बोध हुआ, जिसे खोजने और प्रचारित करने का संकल्प उन्होंने लिया ।
24 मई 2009: वियना का काला दिन और शहादत
*24 मई 2009* को ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में *सतगुरु रविदास महाराज जी* के मंदिर में एक सभा के दौरान कुछ संकीर्ण मानसिकता वाले तत्वों ने संत रामानंद जी और डेरा सचखंड बल्लान के तत्कालीन गद्दीनशीन *संत निरंजन दास जी महाराज* पर घातक हमला किया। इस हमले में संत रामानंद जी ने *57 वर्ष* की आयु में शहादत प्राप्त की, जबकि संत निरंजन दास जी गंभीर रूप से घायल हुए। यह हमला पूरे रविदासिया समाज पर था, जिसका उद्देश्य "अमृतवाणी" सतगुरु रविदास महाराज जी के प्रसार को रोकना था, लेकिन परिणाम विपरीत हुआ । जबकि सतगुरु रविदास महाराज जी ने ही गुरुमुखी लिपि की खोज की ।
शहादत के बाद का जन आंदोलन
संत रामानंद जी की शहादत ने भारत में जनआक्रोश को जन्म दिया। *पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश* समेत कई राज्यों में *15 दिन तक कर्फ्यू* लगा, जो बिना किसी राजनीतिक समर्थन के जनता के आक्रोश से उपजा था। इस घटना ने रविदासिया समाज को एक नई पहचान दी:
- *"एक ग्रंथ" ("अमृतवाणी" सतगुरु रविदास महाराज जी)*,
- *"एक धर्म" (रविदासिया धर्म- एक मानवता वादी सोच)*,
- *"एक निशान" (हरि निशान साहिब - एकता का प्रतीक)*।
यह त्रिकोणीय सिद्धांत आज समाज की एकता का प्रतीक बन चुका है ।
*अमृतवाणी: सतगुरु रविदास महाराज जी की अमर वाणी*
संत रामानंद जी ने "अमृतवाणी" को पुनर्जीवित करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने बेगमपुरा के विचार को वैश्विक स्तर पर प्रसारित किया, जो सतगुरु रविदास महाराज जी द्वारा रचित एक आदर्श समाज का स्वरूप है:
"बेगमपुरा सहर को नाउ ॥ दुखु अंदोहु नही तिहि ठाउ ॥
नां तसवीस खिराजुन मालु खउफु न खता न तरसु जवालु ॥१ ॥
अब मोहि खूब बतन गह पाई ॥ ऊहां खैरि सदा मेरे भाई ॥१॥ रहाउ ॥"
इस वाणी में बेगमपुरा को एक ऐसे समाज के रूप में वर्णित किया गया है जहाँ न कोई शोषण है, न भेदभाव, बल्कि सभी को समान अधिकार और आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है। संत रामानंद जी ने यूरोप में गुरुघरों की स्थापना कर इस विचार को मूर्त रूप दिया, जहाँ आज भी "अमृतवाणी" और "गुरु ग्रंथ साहिब जी" का सम्मानपूर्वक पाठ होता है ।
वैश्विक प्रभाव: यूरोप से विश्व तक
संत रामानंद जी ने *यूरोप, अमेरिका और कनाडा* में अनेक मंदिरों का निर्माण कराया, जैसे:
- *वियना का गुरु रविदास मंदिर* (ऑस्ट्रिया),
- *लंदन के गुरुघर* (यूके),
- *न्यूयॉर्क का रविदासिया धाम* (USA)।
इन मंदिरों में "सतगुरु रविदास महाराज जी" की शिक्षाओं के साथ-साथ बाबा साहेब डॉ भीम राव अंबेडकर जी और अन्य बहुजन नायकों को सम्मान दिया गया। आज इन्हीं प्रयासों के कारण सतगुरु रविदास महाराज जी का प्रकाश पर्व और बेगमपुरा दिवस विश्वभर में मनाए जाते हैं ।
रविदासिया समाज का परिवर्तन
24 मई 2009 के बाद रविदासिया समाज ने अपनी धार्मिक पहचान को मजबूत किया:
1. *अमृतवाणी* को प्राथमिक धर्मग्रंथ के रूप में स्वीकार किया गया।
2. *हरि निशान* (निशान साहिब) को समाज का प्रतीक चिह्न बनाया गया।
3. *बेगमपुरा* के सिद्धांत को सामाजिक न्याय का आधार माना गया।
हालाँकि, *गुरु ग्रंथ साहिब जी* के प्रति सम्मान बरकरार रखा गया, जो आज भी कई गुरुघरों में स्थापित हैं ।
निष्कर्ष: शहादत से सृजन तक
संत रामानंद जी की शहादत ने साबित किया कि "विचारों को गोलियों से नहीं मारा जा सकता" आज वाराणसी में सतगुरु रविदास महाराज जी का स्वर्ण मंदिर और यूरोप में अमृतवाणी का प्रसार उनके सपनों का साकार रूप है। जैसा कि संत रामानंद जी कहा करते थे:
"चलो बनारस साध संगत जी, एक इतिहास रचना है। गुरु रविदास के मंदिर को सोने का बनाना है!"
आज यह इतिहास रचा जा चुका है, और यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है।
जय गुरुदेव धन गुरु रविदास जी!
जय अमर शहीद संत रामानंद!
जय भीम! जय भारत! जय संत समाज!
✍ *लेखक:* शेर सिंह रविदासिया
(राष्ट्रीय अध्यक्ष, ग्लोबल रविदासिया वेल्फेयर ऑर्गेनाइजेशन, भारत)
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